
“डिजीटल इंडिया के दस साल पुरे। सरकार कहती है यह नये युग की सुरुवात ! क्या यह हकीकत है या डिजिटल पेमेंट करना मजबुरी। ? गौर मतलब यह है जीस उमर मे बडे बच्चे मां,बाप परिवार चलाते थे,वहा बाप को बच्चे को चलाने के लीये जो भी काम मिले वह कर बच्चे,परिवार को ऐसे तसै चलाना पड रहा है। डिजिटल ईडीया की बडी बडी बांते हो रही है। पर बेकारी बढ गयी है।बढ रही है। निष्णात पढाई के बावजुद स्थाई रोजगांर नही है। जो काम मिलता है,वह कल रहेगा या नही, उसकी कोई गॅरंटी नही। आवक नही,बेंकमे हजारो चक्कर मारनेसे भी कोई लोन मिलता नही। चक्कर मारते ,मारते अनेको की उमर बढ गई है। ओवर एज हो गये है। सरकार ईस परिस्तिथी पर दुरदूर तक ध्यान नही। या ध्यान देना नही चाहती। आज परिस्थिति येसी है बेंक मे(जमा) करने के लीये पैसा नही। बेंक पेनाल्टी,पर पेनाल्टी मारकर और खराब समय ला रही है। क्या रोजगार बिना आज के दौर मे आदमी का कुछ वजुद है। जो मजबुरी,सक्ती से कार्य सरकार द्वारा हो रहा है। उसे क्या कहा जा सकता है। ? सौ लोगो मे 98 लोग बेरोजगार है। हम,तथा देश कहा जा रहा है।? वातानुकूलित रुम मे बैठकर फैसला सुनाना कहातक सही ठहराया जा सकता है। ? योजना तो है,उसकी जाहीरात पर करोडो,अरबो खर्च किये जाते पर प्रत्यक्ष योजनायें कागजंपर तो नही आखी जां रही है। ? ऐसा नही है,तो हर महीने शासकिय रेशन के दुकान की कतार क्यो कम नही हो रही।? हजारो सवाल शहरी,तथा देहात के युवा पिढी उठा रही है। पर सरकार तो सरकार और कीसको क्या पडी है।? बस खुदही अपनी पिठ थपथपाये जा रहै है। जनता का कोई लेनदेन नही,बस आमदार, खासदार,अपनी पगारे,पेंशन बढाकर खुश है। हकिकत मे जमिनी भयावह परिस्थिती का किसी को लेनदेन है।? क्या यह समृध्द,नया भारत,विश्व मे येसे परिस्थिती को लेकर नेतृत्व कर पायेगा। ? यह नव जवानोंकी दिलसे निकली राय है। जिस उमर मे परिवार संभालना है। उसी उमर मे बेकार बैठै है। क्या यह हकीकत नही। ? यह सर्वे देहात,तथा शहरी सुशिक्षित बेरोजगार, नवजवान,तथा परिवार मुखियां से बातचित के बाद ही स्वअनुभव से लिखा गया है।